सारे अहल-ए-जहाँ में अयाल-ए-ख़ुदा गब्र क्या दहरिया क्या मुसलमान क्या टूटी नाव का जब हो मुहाफ़िज़ ख़ुदा जज़्र-ओ-मद क्या भँवर क्या है तूफ़ान क्या जब गया दिल तो अरमान सारे गए गर मकाँ हो न बाक़ी तो मेहमान क्या नित-नए फ़ित्ने उठते हैं दुनिया में क्यों भेस में आदमी के है शैतान क्या उस को पहचाने 'बरतर' ये मुमकिन नहीं वो न यक-रंग है उस की पहचान क्या