सारे ही ज़िंदगी के फ़साने बदल गए मौसम की तरह दोस्त पुराने बदल गए सिसका है घर की छत पे परिंदा भी रात भर खाए जहाँ निवाले घराने बदल गए शानों पे जिस पिता ने दिखाया उसे जहाँ बिटिया बड़ी हुई तो ठिकाने बदल गए पैंसठ की उम्र में भी चढ़ी हैं जवानियाँ आब-ओ-हवा के साथ सियाने बदल गए निकली है क़ैद-ए-अश्क से मुद्दत में ये 'कशिश' इस मरहले के बा'द ज़माने बदल गए