सारी दुनिया की निगाहों में तमाशा हो गया इश्क़ तुम से क्या हुआ है मैं तो रुस्वा हो गया साए में ख़ुशियों के कितने लोग मेरे साथ थे धूप ग़म की फैलते ही मैं अकेला हो गया अब किसी से ख़ैर-ख़्वाही की नहीं रखना उम्मीद आदमी वैसा नहीं था आज जैसा हो गया राज़ जितने थे सभी सीने में मेरे दफ़्न थे दोस्तों में किस तरह फिर इस का चर्चा हो गया सोचिए इस पर भी जो फ़ुर्सत मिले तो बैठ कर क्या हुआ वीरान क्यूँ गुलशन हमारा हो गया हो गया मग़रूर अपनी लौ पे घर का हर चराग़ रौशनी के फैल जाने से अंधेरा हो गया नामा-ए-आमाल मेरा 'शाद' रौशन कर गया एक ही क़तरा नदामत का सितारा हो गया