तुयूर-ए-फ़िक्र-ओ-सुख़न की उड़ान ज़िंदा है ख़ुदा का शुक्र कि उर्दू ज़बान ज़िंदा है तनाबें काट दीं जिस ने मिरी ज़मीन के साथ उसे कहो कि अभी आसमान ज़िंदा है अजब है गुम्बद-ए-बे-दर की गूँज सुन लेना समाअतों पे तिरा ये गुमान ज़िंदा है नगर की पुख़्ता हवेली में घुट के मरने से चलो कि गाँव का कच्चा मकान ज़िंदा है परों को बैठ गया क्यों समेट कर अपने उड़ान भर कि अभी आसमान ज़िंदा है ख़ुदा के घर को गिराया तो क्या कमाल किया कमाल ये है कि अब भी अज़ान ज़िंदा है बहुत ही ख़ुश हैं फ़सादी जला के घर मेरा ख़बर नहीं कि मिरा ख़ानदान ज़िंदा है हमारा ख़ून है शामिल वतन की मिट्टी में हमारे दम से ही हिन्दोस्तान ज़िंदा है यज़ीदियत तो 'रज़ा' है फ़ना की मंज़िल में हुसैनियत तिरा नाम-ओ-निशान ज़िंदा है