साथ ले कर आए हैं वो रौशनी और चंद फूल मुंसलिक बाहम हुए हैं ज़िंदगी और चंद फूल तज़्किरा शामिल रहा उन में तुम्हारे हुस्न का रास हम को आ गए हैं शायरी और चंद फूल कितना मा'नी-ख़ेज़ है ये रूप क़ब्रिस्तान का क़ब्र से लिपटे हुए हैं ख़ामुशी और चंद फूल इक मुसलसल रोग है ये मुंतज़िर आँखों का रोग याद के जंगल में चमके फिर हँसी और चंद फूल मेरी आँखों से टपक कर अश्क पत्थर बन गए तेरे लहजे की खनक हैं चाँदनी और चंद फूल जी ये चाहे कैमरे की आँख में महफ़ूज़ हों खिलखिलाती धूप में ये जनवरी और चंद फूल कोई बतलाएगा 'आसिफ़' इस की है ता'बीर क्या ख़्वाब में देखे हैं अक्सर इक परी और चंद फूल