सौ बार उस से लड़ के भी हर बार हारना बाज़ी हो इश्क़ की तो मिरे यार हारना उस से शिकस्त खाने में हर बार लुत्फ़ है इक बार हारना हो के सौ बार हारना वो दिल पे हाथ रख दे अगर प्यार से कभी दिल का यही तक़ाज़ा है दिलदार हारना दुनिया में रौशनी है वफ़ाओं के नूर से बन कर किसी के तुम भी तलबगार हारना जिन की दुआओं से तिरी हस्ती कमाल है माँ-बाप के लिए तो ये संसार हारना है लुत्फ़ ज़िंदगी का मोहब्बत की क़ैद में पहलू में उन के हो के गिरफ़्तार हारना रखना बुलंदियों पे हमेशा वक़ार को तुम जान हारना नहीं दस्तार हारना ऐसा भी वक़्त आया है अहद-ए-शबाब में इक फूल के लिए कोई गुलज़ार हारना इल्म-ओ-अदब में हम ने ये सीखा है 'साहिबा' रख कर क़लम के सामने तलवार हारना