सौदा है जो दिल दे के ख़रीदार से उलझे सुलझे हुए हम से न कभी यार से उलझे होने न दिया रश्क ने इज़्हार-ए-तमन्ना हर बात में हम अपनी ही गुफ़्तार से उलझे उलझाव से उलझाव हैं इस इश्क़ में या-रब दिल-दार से अटके थे कि अग़्यार से उलझे क्या सैर हो शाने से लड़े गर दिल-ए-सद-चाक एक एक गिरफ़्तार गिरफ़्तार से उलझे अटके तो किसी चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ से अटके उलझे तो किसी तुर्रा-ए-तर्रार से उलझे चोरी से भी पहुँचे न तिरे घर में कभी हम बरसों यूँही ख़ार-ए-सर-ए-दीवार से उलझे खुलते नहीं तुम 'दाग़' उलझती है तबीअ'त अच्छे किसी अय्यार से मक्कार से उलझे