सीग़ा-ए-राज़ में है मक़्सद-ए-तख़्लीक़ का राज़ ला-मकाँ तक है कहाँ मुर्ग़-ए-ख़िरद की परवाज़ बे-सुरूरी हैं असीरान-ए-शरीअ'त के सुजूद बे-हुज़ूरी है ग़ुलामान-ए-तरीक़त की नमाज़ उस की आँखों में ब-जुज़ हर्फ़-ए-दुआ कुछ भी नहीं जिस को क़ुदरत ने अता की थी निगाह-ए-शहबाज़ रूह की सम्त बढ़ा आता है रहवार-ए-अजल हर नफ़स डूबती साँसों का बिखरता हुआ साज़ ज़ख़्म देते हैं बहुत निश्तर-ए-तक़दीर के ख़म दर्द देता है बहुत हुस्न-ए-ख़मीदा-अंदाज़ मेरी आँखों में है बस ताक़-ए-हरम की क़िंदील मेरे सीने में फ़क़त बर्क़-ए-तमन्ना-ए-हिजाज़ एक कोताह-नज़र बंदा-ए-नादाँ 'बज़्मी' रब्ब-ए-कौनैन इसे नूर-ए-बसीरत से नवाज़