सुब्ह-ए-क़यामत जिन होंटों पे दिलासे देखे क्या लब-ए-दरिया उन जैसे भी प्यासे देखे कौन वफ़ा की मंज़िल से इस शान से गुज़रा चाक-ए-क़बा देखे जो कोई बला से देखे हाथों में मीज़ान लबों पर हुक्म-ए-क़ज़ा है हाकिम-ए-शहर भी अक्सर हम ने ख़ुदा से देखे देखने वाले यूँ तो बहुत देखे हैं लेकिन मर जाऊँ जो कोई तेरी अदा से देखे जिन को ज़ोम था बंद-ए-मिज़ा की मज़बूती पर उन आँखों से बहते हुए दरिया से देखे जिन हाथों से बटती ख़ैरातें देखी थीं इन आँखों से उन हाथों में कासे देखे इस शहर-ए-ना-पुरसाँ में हम ने तो 'आज़र' चेहरे गुलों से देखे दिल सहरा से देखे