शादमानी का कभी ग़म का कभी जोश रहा एक सौदा रहा जब तक कि मुझे होश रहा जुज़ तिरी याद के सब दिल से फ़रामोश रहा मरते मरते दीवाने को ये होश रहा रुख़-ए-पुर-नूर से बस उन का उलटना था नक़ाब कौन कम्बख़्त था ऐसा कि जिसे होश रहा ये भी एहसाँ है जो उस ने न दिया कोई जवाब शौक़-ए-उम्मीद का हामी लब-ए-ख़ामोश रहा बे-धड़क सामने महशर की वो आना तेरा देख लेना जो किसी एक को भी होश रहा किस से फ़रियाद-ए-सितम करते मिला जब कि न तू तू मिला जब तो सितम तेरा फ़रामोश रहा राज़-ए-सर-बस्ता-ए-मय-ख़ाना न खुलने पाया आश्ना-ए-लब-ए-साग़र लब-ए-मय-नोश रहा दर्द रह रह के मिरे दिल में उठा करता है तेरा एहसाँ कि तुझे मैं न फ़रामोश रहा बार-ए-एहसाँ है मिरे सर पे तिरा ओ क़ातिल सर जुदा होने पे भी मैं न सुबुक-दोश रहा दर्द उठते ही तड़पने लगाना महरम-ए-राज़ जो अदा से तिरी वाक़िफ़ था वो ख़ामोश रहा क्या कहूँ मौत ने किस राज़ की दी आ के ख़बर बात ही कुछ थी वो ऐसी कि मैं ख़ामोश रहा जान 'बेताब' की आख़िर शब-ए-तन्हाई ने ली तू कहाँ शाम से ओ वादा-फ़रामोश रहा