सितारो तुम न सो जाना अभी कुछ रात बाक़ी है अधूरी दास्ताँ मेरी है और कुछ बात बाक़ी है मैं वापस जा रहा था मिल के उन से बिन कहे लेकिन मिरे दिल ने पुकारा ठहरो उन से बात बाक़ी है हमारी मंज़िलें इक हैं जुदा हैं रास्ते बे-शक मगर नक़्श-ए-क़दम हर रहगुज़र पर सात बाक़ी है पहुँच कर लेंगे दम हम मंज़िल-ए-मक़्सूद पर हमदम यक़ीं कामिल है ये दिल को कि उस की ज़ात बाक़ी है तरन्नुम बन गई आवाज़ मेरी जब भी मैं रोया ये तेरा ज़र्फ़ है तू जानता क्या बात बाक़ी है शब-ए-फ़ुर्क़त की घड़ियाँ गिनते गिनते उम्र गुज़री है सहारा क्या सहर देती कि दिल में रात बाक़ी है फ़ना होना था इक दिन सो फ़ना होती गई हर शय न ये बाक़ी न वो बाक़ी फ़क़त इक ज़ात बाक़ी है सुकून-ए-दिल मयस्सर हो 'सईद' उस शख़्स से कैसे अभी तो आख़िरी मंज़िल पे उस की मात बाक़ी है