उन को एहसास-ए-ग़म नहीं होता क्यों ये एहसास कम नहीं होता वक़्त लिखता है सब की तक़दीरें हाथ में गो क़लम नहीं होता मैं हूँ उन्वान उस फ़साने का जो कि सर्फ़-ए-क़लम नहीं होता फ़ाएदा क्या है ऐसे रोने से उन का दामन जो नम नहीं होता तुम मिरे साथ साथ चलते हो क्यों ये एहसास कम नहीं होता सब पे रहमत तिरी बरसती है एक हम पर करम नहीं होता मुस्कुराना भी फ़न है दुनिया में किस की दुनिया में ग़म नहीं होता सर झुकाते नहीं हैं हम जिस जा तेरा नक़्श-ए-क़दम नहीं होता एक वो दिल कि टूट जाते हैं एक ये सर कि ख़म नहीं होता उन के ग़म से जो दोस्ती है 'सहर' अब किसी ग़म का ग़म नहीं होता