शब-ए-ग़म की रवानी में रहा हूँ मुसलसल राइगानी में रहा हूँ किसी की याद आँसू बन गई थी मैं सारी रात पानी में रहा हूँ उतर आया मिरे घर माह-ए-कामिल सहर तक मेज़बानी में रहा हूँ मैं इक जज़्बा मोहब्बत नाम मेरा अज़ल से हर कहानी में रहा हूँ कई सहरा किए गुलज़ार मैं ने दिलों की बाग़बानी में रहा हूँ मैं अपनी मुस्कुराहट साथ ले कर किसी की नौहा-ख़्वानी में रहा हूँ