तुझे इश्क़ जौर-ओ-जफ़ा से है तिरा काम जूद-ओ-सख़ा नहीं मुझे सिर्फ़ इस का मलाल है तुझे पास-ए-अहद-ए-वफ़ा नहीं मैं किसी का बंदा-ए-ज़र नहीं मैं किसी के दर पे झुका नहीं तिरे मा-सिवा दो-जहान में मिरा और कोई ख़ुदा नहीं अभी होश आया है हम-नशीं अभी दिल को चैन मिला नहीं ज़रा कह दो फ़स्ल-ए-बहार से अभी चाक-ए-दामाँ सिया नहीं चलीं लाख आँधियाँ ज़ुल्म की उठे लाख तूफ़ाँ हैं जब्र के जो लहू से हम ने जला दिया वो चराग़ अब भी बुझा नहीं बड़ी कैफ़-आवर हैं लज़्ज़तें तिरी याद की तिरे हिज्र की जो मज़ा है शाम-ए-फ़िराक़ में शब-ए-वस्ल में वो मज़ा नहीं हैं ये अहल-ए-क़ाफ़िला ना-समझ ये समझ में आता है हम-नशीं उसे मीर-ए-कारवाँ चुन लिया जिसे आप अपना पता नहीं वो ज़रूर आएँगे एक दिन वो ज़रूर आएँगे बिल-यक़ीं तू किसी की हाँ पे यक़ीन न कर ये 'गिरामी' दिल की सदा नहीं