शब को दिल का ज़ख़्म ताज़ा हो गया रोते रोते ही सवेरा हो गया दे रहे हो तुम सदा अब किस लिए शहर में हर शख़्स बहरा हो गया जब ख़ुशी मिलने लगी तो साथ ही इक नया ख़दशा भी पैदा हो गया क्यों न हम तब्दील कर डालें इसे अब लिबास-ए-ज़ीस्त मैला हो गया दोस्तों की ग़म-गुसारी के सबब अपनी रुस्वाई का चर्चा हो गया हम-नवा जितने भी थे बद-ज़न हुए लीजिए फिर मैं अकेला हो गया