शब को उलझे थे तिरी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से हम अब परेशान हैं उसी ख़्वाब की ता'बीर से हम तुझ से ऐ दोस्त तिरा तर्ज़-ए-तकल्लुम सीखा ख़ामुशी सीख रहे हैं तिरी तस्वीर से हम फ़र्ज़ की क़ैद से दामन जो छुड़ा लेंगे कभी फिर न रोके से रुकेंगे किसी तदबीर से हम अश्क-ए-रंगीं से बनाते हैं जो दिल की तस्वीर नूर भरते हैं तिरे हुस्न की तनवीर से हम तेरी बातों को हर अंदाज़ से परखा हम ने इतने वारफ़्ता न थे लज़्ज़त-ए-तक़रीर से हम की है तक़दीर बदलने की भी सई-ए-पैहम हैफ़ मजबूर रहे आप की तहरीर से हम शाद-ओ-आबाद रहो हाल हमारा पूछा और क्या कहते 'शिफ़ा' उस बुत-ए-बे-पीर से हम