मैं 'शाद' तन्हा इक तरफ़ और दुनिया की दुनिया इक तरफ़ सारा समुंदर इक तरफ़ आँसू का क़तरा इक तरफ़ उस आफ़त-ए-जाँ को भी चेहरा तो दिखाना ही न था इक सम्त ईसा दम-ब-ख़ुद ग़श में है मूसा इक तरफ़ अपने समंद-ए-नाज़ को ऐ शहसवार आ छेड़ कर सफ़-बस्ता हाज़िर कब से हैं महव-ए-तमाशा इक तरफ़ साक़ी बग़ैर अहवाल ये पहुँचा है मय-ख़ाने का अब जाम इक तरफ़ है सर-निगूँ ख़ाली है मीना इक तरफ़ फ़ुर्क़त में सब अच्छे रहे दिल का मगर ये हाल है ज़ख़्म इक तरफ़ बढ़ता गया दाग़-ए-सुवैदा इक तरफ़ दीदार-ए-जानाँ का भला क्यूँ कर तहम्मुल हो सके तिरछी निगाहें एक सू ज़ुल्फ़-ए-चलीपा इक तरफ़ वो तेग़ ले के कहते हैं देखूँ तो हक़ पर कौन है मैं इक तरफ़ 'शाद' इक तरफ़ सारा ज़माना इक तरफ़