तवाज़ुन को खोती है हर ज़ात पी के वो घूँसा चले या चले लात पी के ख़िरामाँ ख़िरामाँ पहाड़ों से चल कर अब आएगा जाड़ा भी बरसात पी के वो इंसाँ नहीं तार जिन के बदन पर मगर फिर भी आए हैं हर रात पी के न थी तिश्नगी के बुझाने की सूरत छकीं नद्दियाँ शहर-ओ-देहात पी के नया फ़ाउंटेन पेन बला-नोश कितना कि हर रोज़ चलता है दावात पी के