शफ़क़ किरनें कँवल तालाब उस के ये मंज़र सब हसीं शादाब उस के चलो कहने को हैं नींदें हमारी मगर आँखों में सारे ख़्वाब उस के जहान-ए-तीरगी आलम हमारा उजाले रौशनी के बाब उस के उसी की ज़ात वज्ह-ए-नूर-ओ-नग़्मा ये झरने कहकशाँ महताब उस के किताब-ए-ज़िंदगी पर नाम अपना जो अंदर देखिए अबवाब उस के हमारी गुफ़्तुगू वाही-तबाही मगर अक़वाल सब नायाब उस के क़तील-ए-दोस्ताँ 'जावेद' अपना मिले थे आज फिर अहबाब उस के