शहादत में ज़फ़र रौशन जबीं को देख ले आ कर सुन ऐ क़ातिल मिरी फ़त्ह-ए-मुबीं को देख ले आ कर मिरी यादों में हैं आबाद मज़लूम-ए-जहाँ सारे कहाँ तक अद्ल है दिल की ज़मीं को देख ले आ कर मिला है यक जहाँ ग़म मुझ को तेरी बेवफ़ाई से ये कैसा औज है जान-ए-हज़ीं को देख ले आ कर मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ कितनी है अपनी ज़ात में 'राशिद' मिले फ़ुर्सत तो उस ख़ाना-नशीं को देख ले आ कर