शाम ढलती मल्गजी परछाइयाँ मैं हूँ और हैं सर-फिरी परछाइयाँ होंट सीती दश्त की नज़्ज़ारगी बात करती बोलती परछाइयाँ मारता मौजें समुंदर का जलाल कुछ उभरती डूबती परछाइयाँ सनसनाते तीर सी पीली हवा चेहरा चेहरा ख़ौफ़ की परछाइयाँ किस लिए खाए फ़रेबों पर फ़रेब साथ देती हैं कहीं परछाइयाँ इक शगुफ़्ता फूल का तन्हा सफ़र ताक में बैठी हुई परछाइयाँ जब पुरानी से मिले मुझ को नजात घेर लेती हैं नई परछाइयाँ मुँह छुपाए एक शर्मिंदा किरन कर रही हैं दिल-लगी परछाइयाँ मुझ को शो'लों के हवाले कर गईं उस के रुख़ पर खेलती परछाइयाँ शाम होते ही कहाँ गुम हो गईं क्या हुईं 'यावर' मिरी परछाइयाँ