शो'लगी हो देखना या हो शरारा देखना दुश्मनी अपनों से हो तो क्या ख़सारा देखना होश बाक़ी हैं अभी कुछ जाँ बदन में है अभी ऐ निगाह-ए-सह्र-ज़ा मुझ को दोबारा देखना मेरे बचपन लौट आ तू एक लम्हे के लिए चाहती है ज़िंदगी तुझ को दोबारा देखना जब क़दम रख ही दिए हैं रहगुज़ार-ए-शौक़ में आते जाते मौसमों का क्या इशारा देखना सर-निगूँ तूफ़ाँ को करने का नशा कुछ और है चाहता है कौन दरिया का किनारा देखना कौन सी साअ'त है बेहतर कौन सा पल ठीक है उस से मिलना है ज़रा तुम इस्तिख़ारा देखना दिल को भाता है बहुत बारिश के थम जाने के बा'द धूप खिलना बादलों को पारा-पारा देखना मैं तो जब भी देखता हूँ उस का चेहरा ही लगे सुब्ह की दहलीज़ पर रौशन सितारा देखना इतनी आसाँ भी नहीं 'यावर' हमारी शायरी गर समझना हो हमें तो इस्तिआ'रा देखना