शाम होते ही घर गए होंगे वो जो ज़िंदा थे मर गए होंगे कोई आवारा अब कहाँ होगा वो जो दिन थे गुज़र गए होंगे जो शनावर थे अब जज़ीरों पर थक के सारे ठहर गए होंगे कोई क़ातिल भी अब नहीं होगा ज़ख़्म जितने थे भर गए होंगे मैं ये समझा था कुछ जुनूँ चेहरे दश्त में फिर उभर गए होंगे कब ठहरते हैं ख़्वाब आँखों में सुब्ह-दम कूच कर गए होंगे दुख ज़माने के फिर कहाँ जाते मेरे दिल में उतर गए होंगे छट चुकी होगी धूल यादों की क़ाफ़िले सब गुज़र गए होंगे दीप तू ने जलाए क्यों आख़िर सब उजालों से डर गए होंगे नाम उस ने मिरा लिया होगा सब के चेहरे उतर गए होंगे