शाम के आसार गीले हैं बहुत फिर मिरी आँखों में तीले हैं बहुत तुम से मिलने का बहाना तक नहीं और बिछड़ जाने के हीले हैं बहुत किश्त-ए-जाँ को ख़ुश्क-साली खा गई मौसमों के रंग पीले हैं बहुत बर्फ़ पिघली है फ़राज़-ए-अर्श से आसमाँ के रंग नीले हैं बहुत बेल की सूरत हैं हम फैले हुए हम फ़क़ीरों के वसीले हैं बहुत मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ मेरे अंदर भी क़बीले हैं बहुत लोग बस्ती के भी हैं शीरीं-सिफ़त मेरे नग़्मे भी रसीले हैं बहुत 'क़ैस' हम जोगी हैं अपने शहर के नाग तो हम ने भी कीले हैं बहुत