बुरा कहने से मुझ को मुद्दआ' क्या कोई पूछे तो उस ने ये कहा क्या सुनें हम भी कि दुश्मन ने कहा क्या भला झूटी शिकायत का गिला क्या मोहब्बत की ये बातें हैं मिरी जाँ वफ़ा की इब्तिदा क्या इंतिहा क्या न कीजे मुझ से ग़ैरों की शिकायत भुला दी आप ने तर्ज़-ए-वफ़ा क्या सुना है क़ैस था लैला का आशिक़ मोहब्बत हो तो फिर अच्छा बुरा क्या जवानी में ये नादानी की बातें वो कहते हैं कि वादे की वफ़ा क्या वफ़ा पर जान भी क़ुर्बां है अपनी जो पूछे हम को उस का पूछना क्या खिले थे उस के लब ग़ुंचे की सूरत बता तो दो कि 'शंकर' से कहा क्या