शराब पीने की आदत बहुत पुरानी है मिरे शबाब की बाक़ी यही निशानी है वो बादा-ख़्वार से खूँ-ख़्वार हो गया क्यूँकर उसे सुनाते हो जिस की लिखी कहानी है क़दम ज़मीन पे लेकिन नज़र फ़लक-पैमा हर इक ज़माना में मशहूर नौजवानी है जुनूँ के कूचे में कुछ रोज़ तो ठहर जाओ ख़िरद में बीती जो उम्र-ए-रवाँ वो फ़ानी है कभी उदास कभी क़हक़हे लगाती है समझ लो दोस्तो ये ज़िंदगी दिवानी है सुना है हम ने भी ख़ामोश मुफसिदों की क़सम नज़र लगे न फ़ज़ा शहर की सुहानी है