शायद नसीब बोसा-ए-नालैन-ए-यार हो जो ख़ाक हो तो ख़ाक-ए-सर-ए-रहगुज़ार हो सहरा हो सेहन-ए-बाग़ हो या कोहसार हो साक़ी जहाँ पिलाए वहीं पर बहार हो हम ख़ाक हो गए प कुदूरत नहीं गई यारब किसी के दिल में न यूँ भी ग़ुबार हो उल्फ़त है ग़ैर की तो सुनो तुम न मेरा हाल रहम आ ही जाएगा तुम्हें नफ़रत हज़ार हो मायूसियों पे भी न हुआ माइल-ए-सुकूँ ऐसा भी दिल किसी का न परवरदिगार हो सब जानता हूँ हज़रत-ए-नासेह प क्या करूँ दिल पर करूँ मैं जब्र अगर इख़्तियार हो यूँ तो ख़बर है आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार की लेकिन नसीब में भी तो लुत्फ़-ए-बहार हो 'बेख़ुद' की बे-ख़ुदी भी है तेरे ख़याल में तेरी ख़ुदी नहीं कि तग़ाफ़ुल-शिआ'र हो