तेरी निगाह-ए-नाज़ के बिस्मिल न होंगे हम हर रंग हर फ़ज़ा में तो शामिल न होंगे हम इक बेवफ़ा से हम ने यहाँ तक कहा कभी चाहेगा गर ख़ुदा भी तो हासिल न होंगे हम तन्क़ीद करने वालों पे हँसना पड़ा हमें मुश्किल वो चाहते हमें मुश्किल न होंगे हम साहिल पे जाने वाले कभी लौटते नहीं धोके से भी कभी कोई साहिल न होंगे हम हम को है इश्क़ उस से जो है 'जौन-एलिया' या'नी कि आप के कोई क़ाबिल न होंगे हम हम ने तो अपने जिस्म में इक दिल को मारा है क्या फिर भी सोचते हो कि क़ातिल न होंगे हम माना शराब पीते हैं तो क्या हुआ मियाँ या'नी कि आप कहते हैं फ़ाज़िल न होंगे हम