शेर-ओ-सुख़न की आदत डाले बैठे हैं इक मुद्दत से रोग ये पाले बैठे हैं रिश्ते में अब पहले जैसी बात नहीं गिरती हुई दीवार सँभाले बैठे हैं चाँद नज़र आएगा इक दिन खिड़की से आस-नगर में डेरा डाले बैठे हैं कैमरे में ये दिलकश मंज़र क़ैद करो सारे उर्दू बोलने वाले बैठे हैं इतने हैबतनाक अंधेरे हैं कि 'वसीम' जान बचाने छुप के उजाले बैठे हैं