शिकस्त मान के तस्ख़ीर कर लिया है मुझे ग़ज़ाल-ए-दश्त ने ज़ंजीर कर लिया है मुझे मैं मुंतशिर था किसी अक्स-ए-राएगाँ की तरह निगाह-ए-शौक़ ने तस्वीर कर लिया है मुझे बिखर गया था सर-ए-शहर-ए-आशियाना मैं किसी के रब्त ने तामीर कर लिया है मुझे निकल के जाऊँ कहाँ मैं हिसार-ए-गर्दिश से सफ़र ने पाँव में ज़ंजीर कर लिया है मुझे सुकूत-ए-ग़म से बदन ख़ाक हो चला था मगर तिलिस्म-ए-लम्स ने इक्सीर कर लिया है मुझे मिरे सुख़न में समा कर किताब-रू ने मिरी ख़ुद अपने हुस्न की तफ़्सीर कर लिया है मुझे मैं इक ख़याल सर-ए-रहगुज़ार-ए-शब था 'सईद' किसी के ख़्वाब ने ताबीर कर लिया है मुझे