शिकायत कर के ग़ुस्सा और उन का तेज़ करना है अभी तो गुफ़्तुगू-ए-मस्लहत-आमेज़ करना है ये दुनिया जा-ए-आसाइश नहीं है आज़माइश है यहाँ जो सख़्तियाँ तुझ पर पड़ीं अंगेज़ करना है ग़ज़ल-ख़्वानी को तू इस बज़्म में आया नहीं 'नादिर' तुझे याँ वाज़ कहना पंद-ए-सूद-आमेज़ करना है