शीशा उस का अजीब है ख़ुद ही वो हमारा रक़ीब है ख़ुद ही जान कर हम नहीं लगाते दिल दिल से हर बुत क़रीब है ख़ुद ही हम को हाजत नहीं नक़ीबों की शेर अपना नक़ीब है ख़ुद ही कोई हम को सलीब क्या देगा फ़न हमारा सलीब है ख़ुद ही शाइरी कोई ख़ुद नहीं मनहूस शेर-गो बद-नसीब है ख़ुद ही मुल्क को माल-ए-वक़्फ़ मत जानो क़ौम अपनी ग़रीब है ख़ुद ही तुम सिखाओगे 'वामिक़' उस को अदब हर परी-वश अदीब है ख़ुद ही