शोर-शराबा छोड़ के पहुँचा वीरानी तक चलते चलते छूट गया दाना-पानी तक आग ने मुझ से हाथ मिलाया घर आ बैठी आँखें फाड़े देख रही है हैरानी तक डूब गए तो सारी दुनिया बुरा कहेगी देखो मुझ में पाओं न रखना तुग़्यानी तक इतना आसाँ तो नहीं उस का वापस होना बेच के ईमाँ पहुँचा है बे-ईमानी तक सुब्ह को उठ कर देखा तो मुझ पर राज़ खुला ये चाँद की सारी शोहरत है बस ताबानी तक हम तो हम हैं ताजवरों पर रो'ब वो छाया पाओं पे उस के रख दिए ताज-ए-सुल्तानी तक आग दर-ओ-दीवार ख़िरद को राख बनाए कुछ न बचे तो हम को पहुँचाए पानी तक शर्म से कोई मरना चाहे तो भी करे क्या 'यावर' अब नायाब है चुल्लू-भर पानी तक