सिनाओं किस तरह उन को है कैसी दास्ताँ मेरी कभी मेरी ज़बाँ उन की कभी उन की ज़बाँ मेरी हमेशा ज़िंदगी ज़ेर-ओ-ज़बर बर्दाश्त करती है गुज़रती जा रही है इस तरह उम्र-ए-रवाँ मेरी बनाया मो'तबर इंसाँ को जिस ने सज्दा करने पर मैं बे-बहरा रहूँ उस से ये हिम्मत है कहाँ मेरी तेरी घटती हुई शोहरत मुझे आगाह करती है कहीं बरसों की मेहनत हो न जाए राएगाँ मेरी हक़ीक़त में मोहब्बत ज़िंदगी का इक क़रीना है न बिखरी आज तक ज़ेबाइश-ए-कौन-ओ-मकाँ मेरी