सिर्फ़ दो लम्हों की ये ज़िंदगी एक लम्हा ग़म का है दूजा ख़ुशी आज गुलशन में नहीं मिलती बहार कल जवाँ होगी चमन की हर कली फिर वही गुलशन वही भौँरों का खेल बाग़ के हर गोशे में है खलबली कल सभी दरिया बहुत ख़ामोश थे आज इठलाने लगी है हर नदी कल बना था घर यही मातम-कदा आज ख़ुशियों की हवा चलने लगी ज़िंदगी तो कश्मकश का नाम है मुश्किलों से तू न घबराना कभी आश्ना-ए-ज़िंदगी बन कर जियो भूल जाओ ज़िंदगी कैसे कटी