सितम में भी तो पहलू उन की ज़ीनत के निकलते हैं हमारे ख़ूँ-शुदा दिल को हसीं तलवों से मलते हैं शिगाफ़-ए-सीना सूराख़-ए-जिगर चाक-ए-दिल-ए-आशिक़ मोहब्बत की गली से सैकड़ों रस्ते निकलते है तुम्हारी माँग के आशिक़ हैं शैख़-ओ-बरहमन दोनों ये वो रस्ता है जिस पर दोस्त दुश्मन साथ चलते हैं खटक आज आँसुओं की दे रही है ये ख़बर मुझ को चुभे थे दिल में जो काँटे वो आँखों से निकलते हैं मैं उस उल्फ़त के सदक़े हूँ मैं उस नफ़रत के क़ुर्बां हूँ जगह है 'राज़' की दिल में मगर सूरत से जलते हैं