सितम ये है कि उन का जौर-ए-पैहम कम नहीं होता मिज़ाज-ए-इश्क़ इस पर भी कभी बरहम नहीं होता ये हालत है कि कुछ पा कर ख़ुशी दिल को नहीं होती अगर कुछ खो भी जाता है तो उस का ग़म नहीं होता कभी हँसते हैं और आँखों में आँसू आए जाते हैं कभी रोते हैं और दामान-ए-मिज़्गाँ नम नहीं होता ख़ुलूस और आश्ती की राह में आँखें बिछाता हूँ ग़ुरूर-ए-जाह के आगे मिरा सर ख़म नहीं होता निशान-ए-नक़्श-ए-पा छोड़ूँगा हर इक गाम पर मुझ से गुज़िश्ता अज़्मतों की ख़ाक पर मातम नहीं होता