तिरी याद ही मिरी हम-नफ़स मिरी उम्र भर का हिसाब है जो बिगड़ गई तो अजीब-तर जो सँवर गई तो किताब है वही काविशें वही जुस्तुजू वही शोहरतें वही रंग-ओ-बू मिरे शौक़-ए-ख़ाना-ख़राब का न सवाल है न जवाब है तिरे इश्क़ से मैं सँवर गया तुझे भूल कर मैं रहा न कुछ तुझे चाहना तो है ज़िंदगी तुझे भूलना तो अज़ाब है जो फ़लक को छूने चले तो हम ज़मीं कह उठी कि ऐ मोहतरम ये बुलंदी तेरी तो ख़्वाब है ये उड़ान तेरी सराब है तिरा हर क़दम 'सईद' इम्तिहान तिरा हर अमल तिरा रहनुमा तिरे नक़्श-ए-पा के हिसार में तिरी मंज़िलों का हिसाब है