सोचते रहना शब-ए-ग़म में इज़ाफ़त करना है दिया बन के हवाओं से मोहब्बत करना हम को इस में भी ज़ियारत का मज़ा मिलता है बैठे रहना तिरे चेहरे की तिलावत करना उस की फ़ुर्क़त में ख़ुद अपने में मैं खो जाता हूँ इस को कहते हैं अमानत में ख़यानत करना हुस्न-ए-जानाँ पे कुछ ऐसी थी जवानी आई पड़ गया हम को रफ़ीक़ों से रक़ाबत करना हम ने पाई है विरासत में ये आदत 'वाहिद' इस ज़माने में भी लोगों से मोहब्बत करना