सोना चाँदी ही न लाए हो न गौहर लाए जा के तुम चाँद से लाए भी तो पत्थर लाए कौन सा काम है दुश्वार तसव्वुर के लिए ये अगर चाहे तो चुल्लू में समुंदर लाए वक़्त क्या शय है ख़ुदाया तिरी रहमत क्या शय लोग कहते हैं कि हर चीज़ मुक़द्दर लाए और कुछ भी तो नहीं पास दुआओं के सिवा हम तिरे वास्ते जो भी था मयस्सर लाए इश्क़ में जान का देना भी अबस बातें हैं इश्क़ में तोड़ के कोई भी न अख़्तर लाए फ़ाएदे हम ही उठा पाए न रब तो वर्ना अपने बंदों के लिए सैंकड़ों अवसर लाए प्यार कुछ और ही है चीज़ इताअ'त कुछ और जो मोहब्बत से मिले वो न तकब्बुर लाए यूँ तो गुन-गान तिरे होते हैं घर घर लेकिन कोई अब घर में न बापू तिरे बंदर लाए गो तुम्हारी भी ग़ज़ल उम्दा है 'पर्वाज़' मगर आज कुछ शोअरा ग़ज़ल तुम से भी बेहतर लाए