सुब्ह को है अगर तो शाम नहीं ज़िंदगी का कोई क़ियाम नहीं जम्अ' करती हूँ दौलत-ए-दुनिया क्या मिरा ये ख़याल-ए-ख़ाम नहीं अहल-ए-दुनिया से दूर रहती हूँ आरज़ू-ए-नुमूद-ओ-नाम नहीं हम ने एक इक को आज़मा देखा दोस्तों में वफ़ा का नाम नहीं जिस से उक़्बा मेरी सँवर जाती ज़िंदगी में हुआ वो काम नहीं जा-ए-इबरत है ये जहान 'नज़र' दिल लगाने का ये मक़ाम नहीं