वो जिन के प्यार में हम ख़ुद को हैं भुलाए हुए ग़ज़ब है दिल वही औरों से हैं लगाए हुए किसी का ग़म हैं कलेजे से हम लगाए हुए ज़माना बीत गया हम को मुस्कुराए हुए किसी की कैसे हो पहचान इस ज़माने में कि अस्ल चेहरा तो है आदमी छुपाए हुए वो बार-ए-ग़म कि मलाइक जिसे उठा न सके वो बार-ए-ग़म भी है ज़ात-ए-बशर उठाए हुए वो नाग जिस ने कि पीछा किया था कल मेरा वो आज फिर है तआ'क़ुब में फन उठाए हुए ज़बान ही नहीं खुलती कि हाल-ए-दिल कह दूँ न जाने कब से 'नज़र' बैठे हैं वो आए हुए