सूख जाता है हर शजर मुझ में कुछ दुआएँ हैं बे-असर मुझ में जानता ही नहीं हूँ मैं उस को वो जो आने लगा नज़र मुझ में धूप में देख कर परिंदों को उगने लगता है इक शजर मुझ में पाँव अब पूछने लगे मुझ से मैं सफ़र में हूँ या सफ़र मुझ में आइना देख कर लगा मुझ को मैं नज़र में हूँ या नज़र मुझ में दर्द में डूब ही गई आवाज़ हिज्र ने अब किया असर मुझ में