सुकूँ माँगे न राहत माँगती है ये चाहत तो इबादत माँगती है उसे रस्म-ओ-रिवायत से ग़रज़ क्या मोहब्बत तो मोहब्बत माँगती है रिवायत तोड़ना मुश्किल बहुत है हर इक जिद्दत बग़ावत माँगती है हमारी आने वाली नस्ल हर दम बुज़ुर्गों से नसीहत माँगती है वो इक नादान बच्ची कर के सज्दा ख़ुदा से रोज़ जन्नत माँगती है ज़मीं और आसमाँ कम पड़ रहे हैं तमन्ना और वुसअ'त माँगती है हमारी प्यास शीशे तोड़ बैठी ये पगली कितनी शिद्दत माँगती है मोहब्बत ज़िंदगी देती है लेकिन मोहब्बत ही क़यामत माँगती है ग़ज़ल की आबरू अब मुझ से 'रिंकी' ज़माने-भर में शोहरत माँगती है