सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा तारीख़-ए-कर्बला-ए-सुख़न! देखना कि मैं ख़ून-ए-जिगर से लिख के वरक़ छोड़ जाऊँगा इक रौशनी की मौत मरूँगा ज़मीन पर जीने का इस जहान में हक़ छोड़ जाऊँगा रोएँगे मेरी याद में महर ओ मह ओ नुजूम इन आइनों में अक्स-ए-क़लक़ छोड़ जाऊँगा वो ओस के दरख़्त लगाऊँगा जा-ब-जा हर बूँद में लहू की रमक़ छोड़ जाऊँगा गुज़रूँगा शहर-ए-संग से जब आइना लिए चेहरे खुले दरीचों में फ़क़ छोड़ जाऊँगा पहुँचूँगा सेहन-ए-बाग़ में शबनम-रुतों के साथ सूखे हुए गुलों में अरक़ छोड़ जाऊँगा हर-सू लगेंगे मुझ से सदाक़त के इश्तिहार हर-सू मोहब्बतों के सबक़ छोड़ जाऊँगा 'साजिद' गुलाब-चाल चलूँगा रविश रविश धरती पे गुल्सितान-ए-शफ़क़ छोड़ जाऊँगा