तुझ से बिछड़ुँगा तिरे ध्यान में रह जाऊँगा मैं रिहा हो के भी ज़िंदान में रह जाऊँगा वो गुज़र जाएगा सौ रास्ते कर के लेकिन मैं कहीं वादा-ओ-पैमान में रह जाऊँगा बाँझ पेड़ों को न काटेगा कोई दस्त-ए-अजल मैं कि फलदार हूँ नुक़सान में रह जाऊँगा एक लम्हा वो पज़ीराई करेगा और मैं उम्र-भर साया-ए-एहसान में रह जाऊँगा आग के फूल तो बुझ जाएँगे लेकिन 'शहज़ाद' मैं सुलगता हुआ गुल-दान में रह जाऊँगा