ये मेरे दिल की वुसअ'त है कहाँ तक ज़मीं से ले के हद्द-ए-आसमाँ तक तुम्हारा हुस्न है कौन-ओ-मकाँ तक कली से गुल से हर इक गुलिस्ताँ तक तेरी उल्फ़त ने मुझ को क्या बनाया अता की है हयात-ए-जावेदाँ तक किधर पे बर्क़ सरगर्दां फिरी है पहुँच पाई न मेरे आशियाँ तक सुनाए दास्ताँ ग़ैरों की अक्सर न आई अपनी ही हालत ज़बाँ तक तेरे जैसा न कोई देख पाया निगाह-ए-शौक़ फिर आती जहाँ तक परेशाँ हो के आलाम-ए-जहाँ से हम आए आज तेरे आस्ताँ तक 'नसीम' ऐसा मिरा हाल-ए-जुनूँ है है इस का सिलसिला सूद-ओ-ज़ियाँ तक