उस से मिल कर भी ख़लिश दिल में रहा करती है वस्ल को हिज्र से क्या चीज़ जुदा करती है वो न मानेगा प हर शब कोई मौहूम सी आस इक दिया बन के दर-ए-दिल पे जला करती है औज-ए-औसान पे चढ़ चढ़ के मोहब्बत की शराब जब उतरती है तो कुछ और नशा करती है तुझ में क्या बात है ऐ दिल कि वफ़ा-केश ये अक़्ल मेरी बांदी है मगर काम तिरा करती है ना-गहाँ पंजा-ए-क़ातिल से मैं क्या छूट गया उस की हसरत मिरे जीने की दुआ करती है आसमानों में उड़ा करते हैं फूले फूले हल्के लोगों के बड़े काम हवा करती है