ताब-ए-निगाह थी तो नज़ारा भी दोस्त था उस चश्म-ए-नर्गिसीं का इशारा भी दोस्त था टूटा तो आसमाँ से ख़लाओं में खो गया जब तक चमक रहा था सितारा भी दोस्त था हम खेलते थे आग से जिस सिन में उन दिनों चिंगारियाँ थीं फूल शरारा भी दोस्त था अठखेलियाँ थीं रेत पे मौजों की दूर तक ठहरी हुई नदी का किनारा भी दोस्त था ग़म-ख़्वारियाँ थीं शेवा दिल-ए-दर्द-मंद का लाख अजनबी हो इश्क़ का मारा भी दोस्त था रातें ख़याल-ओ-ख़्वाब से आरास्ता रहीं पहलू में एक अंजुमन-आरा भी दोस्त था मिट्टी का रिज़्क़ हो गया कुछ यादें छोड़ कर किस से कहें कि शाद सा प्यारा भी दोस्त था किस तरह जा मिला है सफ़-ए-दुश्मनाँ में वो 'इशरत' जो एक शख़्स हमारा भी दोस्त था