तड़प हयात से बाहम नहीं तो कुछ भी नहीं ख़ुशी के साथ अगर ग़म नहीं तो कुछ भी नहीं हज़ार रोइए हाल-ए-तबाह पर अपने किसी की आँख अगर नम नहीं तो कुछ भी नहीं तुम्हारी बात मसीहा-सिफ़त सही लेकिन हमारे ज़ख़्म का मरहम नहीं तो कुछ भी नहीं ग़लत है ख़ून के आँसू बहाना मरने पर जो ज़िंदा लाश का मातम नहीं तो कुछ भी नहीं हज़ार रंग से महफ़िल सजा के तुम देखो तुम्हारे साथ अगर हम नहीं तो कुछ भी नहीं चमन को नाज़ न हो जिस पे वो बहार ही किया अगरचे फूल पे शबनम नहीं तो कुछ भी नहीं 'नज़र' ज़रूर है हाथों में उन के जाम मगर 'नज़र' में कैफ़ का आलम नहीं तो कुछ भी नहीं